munshi premchand ka jeevan parichay: मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय

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मुंशी प्रेमचंद – Munshi Premchand का लेखक परिचय, रचनाएं, भाषा – शैली और साहित्य में स्थान

 Munshi Premchand का लेखक परिचय :   मुंशी प्रेमचंद (munshi premchand ka jeevan parichay ) का लेखक परिचय,  रचनाएं, भाषा – शैली और साहित्य में स्थान नीचे दिया गया है।

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मुंशी प्रेमचंद  का लेखक परिचय | Munshi Premchandka lekhak Parichay In Hindi

Munshi Premchand Biography in Hindi / Munshi Premchand Jeevan Parichay / Munshi Premchand Jivan Parichay / मुंशी प्रेमचंद :

नाम मुंशी प्रेमचंद
बचपन का नाम धनपत राय श्रीवास्तव
उर्दू रचनाओं में नाम नबाबराय
जन्म 31 जुलाई, 1880
जन्मस्थान लमही ग्राम, वाराणसी, उत्तर प्रदेश
मृत्यु 8 अक्टूबर, 1936
पेशा लेखक, अध्यापक, पत्रकार
माता आनंदी देवी
पिता अजायब राय
पत्नी शिवारानी देवी (1906-1938)
पुत्र अमृतराय, श्रीपथराय
पुत्री कमला देवी
प्रमुख रचनाएँ सेवासदन, निर्मला, रंगभूमि, कर्मभूमि, गबन, गोदान; कर्बला, संग्राम, प्रेम की वेदी; मानसरोवर: नमक का दारोगा, पूस की रात, बड़े भाई साहब, मंत्र
भाषा उर्दू, हिन्दी
शैली वर्णनात्मक, व्यंग्यात्मक, भावात्मक तथा विवेचनात्मक
साहित्य काल आधुनिक काल
विधाएं कहानी, उपन्यास, नाटक, निबंध
साहित्य में स्थान आधुनिक काल के सर्वोच्च उपन्यासकार एवं कहानीकार
सम्पादन माधुरी, मर्यादा, हंस, जागरण

जीवन परिचय –

कथा-साहित्य के शिखर पुरुष उपन्यास सम्राट प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को वाराणसी के निकट लमही गाँव में हुआ था। आपका मूल नाम धनपत राय था। आपकी माता का नाम आनन्दी देवी था तथा पिता मुंशी अजायब राय लमही में डाक मुंशी थे। उनकी शिक्षा का आरम्भ उर्दू, फारसी से हुआ और जीवन-यापन का अध्यापन से। 1898 में मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद एक स्थानीय विद्यालय में शिक्षक बने। 1910 में इण्टर तथा 1919 में बी. ए. पास करके शिक्षा विभाग में इंस्पेक्टर बने। सात वर्ष की अवस्था में माँ तथा चौदह वर्ष की अवस्था में पिता का देहान्त हो गया।

1910 में धनपत राय के नाम से ‘सोजे-वतन’ राष्ट्र प्रेम और क्रान्तिकारी भावों से पूर्ण कहानी संग्रह लिखा, जिसे हमीरपुर के जिला कलेक्टर ने जब्त कर नष्ट कर दिया। तब सन् 1915 में महावीर प्रसाद द्विवेदी की प्रेरणा पर ‘प्रेमचंद’ के नाम से लेखन कार्य शुरू किया। जीवन के अन्तिम दिनों में वे गम्भीर रूप से बीमार पड़े। 8 अक्टूबर 1936 में उनका निधन हो गया। उनका अन्तिम उपन्यास ‘मंगलसूत्र’ उनके पुत्र अमृत राय ने पूरा किया। साहित्य सेवा-आधुनिक हिंदी कहानी के पितामह प्रेमचंद के साहित्यिक जीवन का आरम्भ 1901 से हो चुका था। उन्होंने उपन्यास, नाटक, जीवन-चरित्र, निबन्ध, अनुदित रचनाएँ लिखकर हिंदी साहित्य के भण्डार को भर दिया। ‘गबन’ व ‘गोदान’ उपन्यासों पर फिल्म भी तैयार की गई।

रचनाएँ-

प्रेमचंद ने कहानी, नाटक, जीवन-चरित्र, निबन्ध तथा सम्पादन के क्षेत्र में भी अपनी प्रतिभा का परिचय दिया है।

(क) उपन्यास ‘कर्मभूमि’, ‘कायाकल्प’, ‘निर्मला’, ‘प्रतिज्ञा’, ‘प्रेमाश्रय’, ‘वरदान’ ‘सेवासदन’, ‘रंगभूमि’, ‘गबन’, ‘गोदान’ और ‘मंगलसूत्र’ (अपूर्ण)।

(ख) कहानी संग्रह- ‘पंचपरमेश्वर’, ‘बड़े घर की बेटी’, ‘नमक का दारोगा’, ‘मंत्र’ पूस की रात’, ‘सोजे वतन’, ‘कफन’, ‘मानसरोवर’ (8 भाग) आदि।

प्रेमचंद की कहानी संग्रह

इनकी पहली कहानी “ममता” है। ‘प्रेमचंद’ नाम से उनकी पहली कहानी बड़े घर की बेटी ज़माना पत्रिका के दिसम्बर 1910 के अंक में प्रकाशित हुई। मुंशी प्रेमचंद ने 300 से अधिक कहानियाँ मानसरोवर नामक पुस्तक द्वारा आठ भागों में प्रकाशित हुई हैं जिनमें- नवविधि, प्रेम पूर्णिमा, लाल फीता, नमक का दारोगा, प्रेम पचीसी, प्रेम प्रसून, प्रेम द्वाद्वशी, प्रेम तीर्थ, प्रेम प्रतिज्ञा, सप्त सुमन, प्रेम पंचगी, प्रेरणा, समरयात्रा, पंच प्रसून, नव जीवन, बड़े घर की बेटी, सप्त सरोज आदि प्रमुख हैं।

प्रतिनिधि कहानियां

प्रेमचंद की प्रतिनिधि कहानियों में- पंच परमेश्वर, सज्जनता का दंड, ईश्वरी न्याय, दुर्गा का मंदिर, आत्माराम, बूढ़ी काकी, सवा सेर गेहूं, शतरंज के खिलाड़ी, माता का हृदय, सुजान भगत, इस्तीफा, अलग्योझा, पूस की रात, बड़े भाई साहब, होली का उपहार, ठाकुर का कुआं, बेटों वाली विधवा, ईदगाह, प्रेम प्रमोद, नशा, दफन आदि प्रमुख हैं।

कहानियों की सूची: मुंशी प्रेमचंद की मानसरोवर के आठ भागों में प्रकाशित होने वाली 300 से अधिक कहानियों में से 118 के नाम निम्न हैं-

  1. अनाथ लड़की
  2. अन्धेर
  3. अपनी करनी
  4. अमृत
  5. अलग्योझा
  6. आखिरी तोहफ़ा
  7. आखिरी मंजिल
  8. आत्म-संगीत
  9. आत्माराम
  10. आल्हा
  11. इज्जत का खून
  12. इस्तीफा
  13. ईदगाह
  14. ईश्वरीय न्याय
  15. उद्धार
  16. एक आँच की कसर
  17. एक्ट्रेस
  18. कप्तान साहब
  19. कफ़न
  20. कर्मों का फल
  21. कवच
  22. कातिल
  23. कोई दुख न हो तो बकरी खरीद ला
  24. कौशल़
  25. क्रिकेट मैच
  26. खुदी
  27. गुल्‍ली डण्डा
  28. गृह-दाह
  29. गैरत की कटार
  30. घमण्ड का पुतला
  31. जुलूस
  32. जेल
  33. ज्‍योति
  34. झाँकी
  35. ठाकुर का कुआँ
  36. तांगेवाले की बड़
  37. तिरसूल
  38. तेंतर
  39. त्रिया-चरित्र
  40. दण्ड
  41. दिल की रानी
  42. दुर्गा का मन्दिर
  43. दूध का दाम
  44. दूसरी शादी
  45. देवी
  46. देवी – एक और कहानी
  47. दो बैलों की कथा
  48. दो सखियाँ
  49. धिक्कार
  50. धिक्कार – एक और कहानी
  51. नबी का नीति-निर्वाह
  52. नमक का दरोगा
  53. नरक का मार्ग
  54. नशा
  55. नसीहतों का दफ्तर
  56. नाग-पूजा
  57. नादान दोस्त
  58. निर्वासन
  59. नेउर
  60. नेकी
  61. नैराश्य
  62. नैराश्य लीला
  63. पंच परमेश्वर
  64. पत्नी से पति
  65. परीक्षा
  66. पर्वत-यात्रा
  67. पुत्र-प्रेम
  68. पूस की रात
  69. पैपुजी
  70. प्रतिशोध
  71. प्रायश्चित
  72. प्रेम-सूत्र
  73. बड़े घर की बेटी
  74. बड़े बाबू
  75. बड़े भाई साहब
  76. बन्द दरवाजा
  77. बाँका जमींदार
  78. बेटोंवाली विधवा
  79. बैंक का दिवाला
  80. बोहनी
  81. मनावन
  82. मन्त्र
  83. मन्दिर और मस्जिद
  84. ममता
  85. माँ
  86. माता का ह्रदय
  87. मिलाप
  88. मुक्तिधन
  89. मुबारक बीमारी
  90. मैकू
  91. मोटेराम जी शास्त्री
  92. राजहठ
  93. राष्ट्र का सेवक
  94. र्स्वग की देवी
  95. लैला
  96. वफ़ा का खजर
  97. वासना की कड़ियां
  98. विजय
  99. विश्वास
  100. शंखनाद
  101. शराब की दुकान
  102. शादी की वजह
  103. शान्ति
  104. शान्ति
  105. शूद्र
  106. सभ्यता का रहस्य
  107. समर यात्रा
  108. समस्या
  109. सवा सेर गेहूँ नमक का दरोगा
  110. सिर्फ एक आवाज
  111. सैलानी बन्दर
  112. सोहाग का शव
  113. सौत
  114. स्त्री और पुरूष
  115. स्वर्ग की देवी
  116. स्वांग
  117. स्‍वामिनी
  118. होली की छुट्टी

निबंध संग्रह

मुंशी प्रेमचंद के निबंध: पुराना जमाना नया जमाना, स्‍वराज के फायदे, कहानी कला (तीन भागों में), कौमी भाषा के विषय में कुछ विचार, हिन्दी-उर्दू की एकता, महाजनी सभ्‍यता, उपन्‍यास, जीवन में साहित्‍य का स्‍थान आदि प्रमुख हैं।

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प्रेमचंद के अनुवाद

मुंशी प्रेमचंद ने ‘टॉलस्‍टॉय की कहानियाँ’ (1923), गाल्‍सवर्दी के तीन नाटकों का हड़ताल (1930), चाँदी की डिबिया (1931) और न्‍याय (1931) नाम से अनुवाद किया। उनका रतननाथ सरशार के उर्दू उपन्‍यास फसान-ए-आजाद का हिन्दी अनुवाद आजाद कथा बहुत मशहूर हुआ।

(ग) नाटक ‘कर्बला’, ‘प्रेम की वेदी’, ‘संग्राम और रूठी रानी

(घ) जीवन चरित्र ‘कलम’, ‘तलवार और त्याग’, ‘दुर्गादास और रामचर्चा’।

(ङ) निबन्ध संग्रह-‘कुछ विचार’, ‘विविध प्रसंग’।

(च) सम्पादन- ‘मर्यादा’, ‘माधुरी’, ‘हंस’, ‘जागरण’ साप्ताहिक पत्र।

(छ) अनूदित ‘अहंकार’, ‘सुखदास’, ‘आजाद कथा’, ‘चाँदी की डिबिया’ ‘टॉलस्टाय की कहानियाँ’ और ‘सृष्टि का आरम्भ’।

वर्ण्य-विषय-प्रेमचंद ने हिंदी में यथार्थवाद को आरम्भ किया। समाज के उपेक्षित, अपमानित, पतित, किसान, गरीब मजदूर, दहेज प्रथा, बेमेल विवाह आदि उनकी रचनाओं के विषय थे। अपनी कहानियों में प्रेमचंद ने भारतीय ग्राम्य जीवन व समाज का वर्णन किया है। उनका साहित्य निम्न एवं मध्यम वर्ग की सच्ची तस्वीर प्रस्तुत करता है।

भाषा

प्रेमचंद की भाषा के दो रूप हैं- एक रूप तो जिसमें संस्कृत के तत्सम शब्दों की प्रधानता है, जैसे- ‘तर्क ने भ्रम को पुष्ट किया।’ दूसरा रूप जिसमें उर्दू, संस्कृत और हिंदी के व्यावहारिक शब्दों का प्रयोग किया गया है, जैसे-पीर का मजार, फुरसत, रोजनामचे । प्रेमचंद की भाषा चुलबली है जिसमें मुहावरों-कहावतों का प्रयोग है।

शैली

प्रेमचंद बेजोड़ शैली के रचयिता थे-

  1. वर्णनात्मक शैली – इस शैली का प्रयोग प्रेमचंद ने घटनाओं और पात्रों के चरित्र-चित्रण के वर्णन में किया है जिससे चित्रात्मकता उत्पन्न हो गई है।
  2. विवेचनात्मक शैली – निबन्धों में गम्भीर विचारों को व्यक्त करने के लिए इस शैली का प्रयोग किया जिसमें संस्कृतनिष्ठ भाषा मिलती है।
  3. मनोवैज्ञानिक शैली-मन के भावों तथा पात्रों के मन में उत्पन्न अन्तर्द्वन्द्व चित्रित करने के लिए इस शैली का प्रयोग किया है। ‘मंत्र’ कहानी में बूढ़े के चरित्र में यह शैली मिलती है।
  4. हास्य-व्यंग्यात्मक शैली- सामाजिक विषमताओं का चित्रण करते समय, आपने इस शैली का प्रयोग किया है, जैसे- रूढ़िवादिता आदि। यह शैली ‘फटे जूते’ कहानी में मिलती है। भावात्मक शैली- मानव जीवन से सम्बन्धित विभिन्न भावनाओं की सशक्त अभिव्यक्ति हुई है। यह शैली ‘निर्मला’ उपन्यास में देखने को मिलती है।

साहित्य में स्थान –

प्रेमचंद (Munshi Premchand) ने हिंदी साहित्य में युगान्तकारी परिवर्तन किया। उनका साहित्य देशभक्ति और समाज के आगे मशाल दिखाती हुई सच्चाई है। उनके रचनात्मक योगदान के कारण 1918 से 1936 तक के काल को प्रेमचंद युग कहा जाता है। प्रेमचंद रचनात्मक जीवन में साहित्य की ऐसी विरासत सौंप गए हैं, जो गुणों की दृष्टि से अमूल्य है और आकार की दृष्टि से असीमित

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Frequently Asked Questions (FAQ)

1. प्रेमचंद का जन्म कब हुआ था?

मुंशी प्रेमचंद का जन्म सन् 1880 में वाराणसी जिले के लमही ग्राम में हुआ था।

2. प्रेमचंद का जीवन परिचय लिखिए?

प्रेमचंद का जन्म सन् 1880 में वाराणसी के लमही ग्राम में हुआ था। उनका बचपन का नाम धनपत राय था। अल्पायु में माता-पिता की मृत्यु के कारण उनका बचपन से ही उनका जीवन बहुत ही, संघर्षो से गुजरा था। किन्तु जिस साहस और परिश्रम से उन्होंने अपना अध्ययन जारी रखा, वह साधनहीन एवं कुशाग्रबुद्धि और परिश्रमी छात्रों के लिए प्रेरणाप्रद है। उनकी शिक्षा स्थानीय स्कूल में सम्पन्न हुई। उनकी मृत्यु 1936 में हुई।

3. प्रेमचंद की मृत्यु कब हुई थी?

मुंशी प्रेमचंद की मृत्यु लम्बी बीमारी के बाद 8 अक्टूबर 1936 को हुई थी।

4. प्रेमचंद का विवाह किससे हुआ था?

प्रेमचंद का पहला विवाह पन्द्रह वर्ष की अल्पायु में उनके पिताजी ने करा दिया। उस समय मुंशी प्रेमचंद कक्षा 9 के छात्र थे। पहली पत्नी को छोड़ने के बाद उन्होंने दूसरा विवाह 1906 में शिवारानी देवी से किया जो एक महान साहित्यकार थीं। प्रेमचंद की मृत्यु के बाद उन्होंने “प्रेमचंद घर में” नाम से एक प्रसिद्ध पुस्तक लिखी।

5. धनपत राय को प्रेमचंद नाम किसने दिया?

अंग्रेजों के खिलाफ लिखने पर, ब्रिटिश शासकों ने धनपत राय पर प्रतिबंध लगा दिया। जिससे उन्होंने अपना नाम बदलकर प्रेमचंद कर लिया।

6. मुंशी प्रेमचंद को कलम का सिपाही क्यों कहा जाता है?

मुंशी प्रेमचंद का वास्तविक नाम धनपत राय था। उनके लेखन का मुकाबला आज के बड़े-बड़े लेखक भी नहीं कर पाते हैं इसलिए अमृत राय ने मुंशी प्रेमचंद्र को ‘कलम का सिपाही’ कहा है। क़लम का सिपाही हिन्दी के विख्यात साहित्यकार अमृत राय द्वारा रचित एक जीवनी है जिसके लिये उन्हें सन् 1963 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

7. प्रेमचंद की पहली कहानी का नाम क्या है?

इनकी पहली कहानी “ममता” है तथा ‘प्रेमचंद’ नाम से उनकी पहली कहानी “बड़े घर की बेटी” है। जो ज़माना नामक पत्रिका में दिसम्बर 1910 के अंक में प्रकाशित हुई।

8. मुंशी प्रेमचंद की भाषा शैली कैसी थी?

मुंशी प्रेमचंद जी उर्दू से हिन्दी में आए थे; अत: उनकी भाषा में उर्दू की चुस्त लोकोक्तियों तथा मुहावरों के प्रयोग की प्रचुरता मिलती है। प्रेमचंद जी की भाषा सहज, सरल, व्यावहारिक, प्रवाहपूर्ण, मुहावरेदार एवं प्रभावशाली है तथा उसमें अद्भुत व्यंजना-शक्ति भी विद्यमान है। मुंशी प्रेमचंद जी की शैली आकर्षक है। इसमें मार्मिकता है। उनकी रचनाओं में चार प्रकार की शैलियाँ उपलब्ध होती है। वे इस प्रकार हैं- वर्णनात्मक, व्यंग्यात्मक, भावात्मक तथा विवेचनात्मक। चित्रात्मकता मुंशी प्रेमचंद की रचनाओं की विशेषता है।

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