प्रश्न : कृष्णा सोबती का जीवन परिचय निम्नांकित बिंदुओं के अन्तर्गत लिखिए – (1) दो रचनाएँ (2) भाषा शैली (3) साहित्य में स्थान
Krishna Sobti ka jivan Parichay: भारत-पाकिस्तान पर हिन्दी में कालजयी रचनाएँ लिखने वाली Krishna Sobti ka jivan Parichay कृष्णा सोबती का जन्म 18 फरवरी 1925 को गुजरात (सम्बद्ध भाग अब पश्चिमी पंजाब पाकिस्तान) में हुआ था। इसका बचपन पिता-भाई-बहन के साथ बीता। इनकी शिक्षा लाहौर शिमला तथा दिल्ली में एफ.सी. महिला महाविद्यालय से की। विभाजन के बाद ये दिल्ली में बस गई तथा आजीवन लेखन कार्य करती रहीं। बचपन में उन्हें अपने मोजे धोने पड़ते थे। रंग-बिरंगे कपड़े पहनना, जूतों या पॉलिश करना, कचौड़ी-कुल्फो खाना, टोपियाँ पहनना इनके शोक थे। यह मुख्य रूप से आख्ययिका लेखिका है।
साहित्य अकादमी सम्मान, हिन्दी अकादमी का शलाका सम्मान, साहित्य अकादमी की फैलोशिप और ज्ञानपीठ पुरस्कार से उन्हें सम्मानित किया गया। कृष्णा सोबती स्वाभिमानी लेखिका थीं, उन्होंने ।। अक्टूबर, 1915 को दादरी काण्ड से झुब्ध होकर साहित्य अकादमी की फैलोशिप लौटा दी। उसी प्रकार 1966 में साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला जिसे 2015 में असहिष्णुता के खिलाफ इनाम वापस कर दिया। 25 जनवरी, 2019 को एक लम्बी बीमारी के बाद सुबह साढ़े आठ बजे एक निजी अम्पताल में आपने इस संसार से विदा ले ली।
कृष्णा सोबती का जीवन परिचय (Krishna Sobti Ka Jivan Parichay)और उनकी साहित्यिक रचनाओं के बारे में विस्तार से जानते हैं।
लेखिका का नाम | कृष्णा सोबती (Krishna Sobti) |
जन्म तिथि | 18 जनवरी 1925 |
जन्म स्थान | गुजरात (पश्चिमी वर्तमान में पाकिस्तान) |
पिता का नाम | श्री दीवान पृथ्वीराज सोबती |
माता का नाम | श्रीमती दुर्गा देवी |
भाई का नाम | जगदीश सोबती |
प्रसिद्ध कहानियां संग्रह | डार से बिछुड़ी, मित्रो मरजानी, यारों के यार |
प्रसिद्ध उपन्यास | जिंदगीनामा, सूरजमुखी अँधेरे के, दिलोंदानिश |
पति का नाम | शिवनाथ |
पुरस्कार | ज्ञानपीठ पुरस्कार (वर्ष 2017), साहित्य अकादमी पुरस्कार (वर्ष 1982) |
मृत्यु | 25 जनवरी, 2019 नई दिल्ली |
जीवनकाल | 94 वर्ष |
साहित्य सेवा :-
कृष्णा सोबती ने 50 के दशक से लिखना आरम्भ किया था। ‘लामा’ उनको सबसे पानी कहानी थी। उनकी लेखनी लेखन की विविध विधाओं पर चली है एक ओर डार से बियुडो, जिन्दगीनामा जैसे उपन्यास लिखे तो दूसरी ओर बादलों के घेरे तथा सिक्का बदल गया * जैसी कहानियाँ, कल्पितार्थ (फिक्शन) तथा हशमत जैसे शब्दचित्र लिखे हैं। समय-समय उन्हें अनेक पुरस्कार मिले हैं। 1980 में साहित्य अकादमी पुरस्कार, 1981 में शिरोमणि एम्कार, 1996 में साहित्य अकादमी पुरस्कार, 2000-2001 में शलाका सम्मान तथा 2017 में 5) ज्ञानपीठ पुरस्कार प्रदान करने की घोषणा की गई, इनसे हिन्दी कथा भाषा को विलक्षण हाणी मिली है। वे मानती है कम लिखना विशिष्ट लिखना है। उन्होंने कई यादगार चरित्र दिए १. जैसे-मित्रों, शाहनी, हशमत आदि।
भाषा शैली:- कृष्णा जी के भाषा प्रयोग मे विविधता है। उन्होंने हिंदी की कथा भाषा को एक विलक्षण ताज़गी दी है। सांस्कृतिक तत्समता उर्दू का बॉकपन, पंजाबी की जिंदादिली, यह सब एक साथ उनकी रचनाओं मे मौजूद है। उनकी शैली में कृत्रिमता नाम मात्र की भी नही है वरन यथार्थता के मुहावरेदार विवरणात्मक एवं व्यंग्यात्मक शैली प्रमुख रूप से देखने को मिलती है।
रचनाएँ :-
कृष्णा सोबती ने लेखन की अनेक विधाओं को अपनाया-
(क) उपन्यास ‘मित्रो मरजानी’, ‘सूरजमुखी’, ‘अंधेरे के यारों के बार तिनपहाड़ ”विदास’, ‘जिन्दगीनामा ‘ऐ लड़की’, ‘सोबती एक सोहबत’,’ समय-सरगम’, कैरी मेहरबान सिंह’।
कहानी संग्रह
कहानी संग्रह | प्रकाशन वर्ष |
बादलों के घेरे | सन 1980 |
लंबी कहानी (आख्यायिका/उपन्यासिका)
लंबी कहानियां | प्रकाशन वर्ष |
सिक्का बदल गया | सन 1948 |
डार से बिछुड़ी | सन 1958 |
मित्रो मरजानी | सन 1967 |
यारों के यार | सन 1968 |
तिन पहाड़ | सन 1968 |
ऐ लड़की | सन 1991 |
जैनी मेहरबान सिंह | सन 2007 |
उपन्यास
उपन्यास का नाम | प्रकाशन वर्ष |
सूरजमुखी अँधेरे के | सन 1972 |
ज़िन्दगी़नामा | सन 1979 |
दिलोदानिश | सन 1993 |
समय सरगम | सन 2000 |
गुजरात पाकिस्तान से गुजरात हिंदुस्तान | सन 2017 |
विचार-संवाद-संस्मरण
- हम हशमत (तीन भागों में)
- सोबती एक सोहबत
- शब्दों के आलोक में
- सोबती वैद संवाद
- मुक्तिबोध : एक व्यक्तित्व सही की तलाश में -2017
- लेखक का जनतंत्र -2018
- मार्फ़त दिल्ली -2018
यात्रा-आख्यान
- बुद्ध का कमंडल: लद्दाख़
कृष्ण सोबती की साहित्यिक उपलब्धियां
कृष्णा सोबती (Krishna Sobti Ka Jivan Parichay) को हिंदी गद्य साहित्य में अपना विशेष योगदान देने के लिए सरकारी और ग़ैर-सरकारी संस्थाओं द्वारा कई पुरस्कारों व सम्मान से पुरस्कृत किया जा चुका है, जो कि इस प्रकार हैं :-
- कृष्णा सोबती को सन 1980 में जिंदगीनामा, उपन्यास के लिए “साहित्य अकादमी पुरस्कार” से सम्मानित किया गया।
- कृष्णा सोबती को सन 1981 में “शिरोमणि पुरस्कार” के अतिरिक्त “मैथिली शरण गुप्त सम्मान” से सम्मानित किया गया।
- कृष्णा सोबती को सन 1982 में “हिंदी अकादमी पुरस्कार” से पुरस्कृत किया गया।
- कृष्णा सोबती को सन 1996 में “साहित्य अकादमी फेलोशिप” से पुरस्कृत किया गया।
- सन 1999 में “लाइफटाइम लिटरेरी अचीवमेंट अवार्ड” के साथ कृष्णा सोबती प्रथम महिला लेखिका बनीं जिन्हें कथा “चूड़ामणि अवार्ड” से सम्मानित किया गया था।
- कृष्णा सोबती को सन 2008 में हिंदी अकादमी दिल्ली का “शलाका अवार्ड” से भी सम्मानित किया गया है।
- कृष्णा सोबती को सन 2017 में भारतीय साहित्य के सर्वोच्च सम्मान “ज्ञानपीठ पुरस्कार” से सम्मानित किया गया है।
रचनाएँ :-
कृष्णा सोबती ने लेखन की अनेक विधाओं को अपनाया-
(क) उपन्यास ‘मित्रो मरजानी’, ‘सूरजमुखी’, ‘अंधेरे के यारों के बार तिनपहाड़ ”विदास’, ‘जिन्दगीनामा ‘ऐ लड़की’, ‘सोबती एक सोहबत’,’ समय-सरगम’, कैरी मेहरबान सिंह’।
“हुक्म कीजिए, जहाँपनाह।”
बादशाह सलामत ने फरमाया- कोई ऐसी चीज बनाओ जो आग से पके न पानी से
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साहित्य में स्थान :-
श्रेष्ठ अख्यिकाकार, उपन्यासकार, निबन्धकार, संस्मरणकार कृष्णा सोबती अपनी खुलासेवी अपनी कुण्य का खुला रूप, 18वीं व 19वीं शताब्दी की प्रवृत्तियों से अवगत साहित्य प्रेमियों बीच किदा करता रहेगा। इनके द्वारा किए गए नारी की यौन कुण्ठाओं के मनोवैज्ञानिक को सदैव देशलेषण ने इन्हें हिन्दी साहित्य जगत में अमर बना दिया
पुरस्कार व सम्मान (Awards and Honors of Krishna Sobti)
- कृष्णा सोबती को 1980 में जिंदगीनामा के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
- 1981 में शिरोमणि पुरस्कार के अतिरिक्त मैथिली शरण गुप्त सम्मान से सम्मानित किया गया।
- 1982 में कृष्णा सोबती को हिंदी अकादमी पुरस्कार से पुरस्कृत किया गया।
- 1996 में कृष्णा सोबती को साहित्य अकादमी फेलोशिप से पुरस्कृत किया गया।
- 1999 में, लाइफटाइम लिटरेरी अचीवमेंट अवार्ड के साथ कृष्णा सोबती प्रथम महिला बनीं जिन्हें कथा चूड़ामणि अवार्ड से नवाजा गया।
- 2008 में हिंदी अकादमी दिल्ली का शलाका अवार्ड भी उनको मिला।
- कृष्णा सोबती को भारतीय साहित्य में पथ-प्रदर्शक योगदान के लिए 2017 में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
FAQs
कृष्णा सोबती का जन्म पंजाब प्रांत के गुजरात शहर में 18 फरवरी 1925 को हुआ था, जो अब पाकिस्तान में है।
कृष्णा सोबती की माता का नाम ‘दुर्गा देवी’ था जबकि पिता का नाम ‘दीवान पृथ्वीराज सोबती’ था।
कृष्णा सोबती को वर्ष 2017 में प्रतिष्ठित ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया था।
हम हशमत, कृष्णा सोबती का लोकप्रिय संस्मरण है।
कृष्णा सोबती की भाषा शैली सहज, सरल, और व्यवहारिक है। वे प्रायः प्रसंगानुकूल और पात्रानुकूल भाषा का प्रयोग करती है।
यह कृष्णा सोबती का बहुचर्चित उपन्यास है।
ज़िंदगीनामा, दिलोदानिश (उपन्यास) और बादलों के घेरे (कहानी संग्रह) उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं।
कृष्णा सोबती का 25 जनवरी 2019 को 93 वर्ष की आयु में नई दिल्ली में निधन हुआ था।
उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार, ज्ञानपीठ पुरस्कार, और पद्मभूषण से सम्मानित किया गया था।
कृष्णा सोबती ने भारतीय समाज, खासकर महिलाओं की स्थिति पर गहरा प्रभाव डाला। उनके लेखन में सामाजिक यथार्थ और स्त्री विमर्श की गहरी छाप है।
उनका लेखन यथार्थवादी और समाज पर आधारित था। वे स्त्री मनोविज्ञान और स्वतंत्रता के विषयों पर लिखने के लिए जानी जाती थीं।
उन्होंने अपने लेखन की शुरुआत 1944 में की थी और उनका पहला उपन्यास ‘चन्ना’ था, जो बाद में ‘ज़िन्दगीनामा’ के रूप में प्रकाशित हुआ।
उनका निधन 25 जनवरी 2019 को हुआ था।
मित्रो मरजानी’, ‘डार से बिछुड़ी’, और ‘ज़िन्दगीनामा’ उनकी चर्चित पुस्तकें हैं।