Mahangai Samasya Par Nibandh : महँगाई की समस्या पर निबंध
महँगाई की समस्या पर निबंध || Mahangai Samasya Par Nibandh
“जब आदमी के हाल पे आती है मुफलिसी।
किस-किस तरह से उसको सताती है मुफलिसी ।”
रूपरेखा :-
- प्रस्तावना
- कृषि
- प्रशासन की उदासीनता
- आयात नीति कभी
- जनसंख्या में वृद्धि
- घाटे का बजट
- अव्यवस्थित वितरण प्रणाली
- धन का असमान वितरण
- समस्या का निदान
- उपसंहार
प्रस्तावना- भारत में इस समय जो आर्थिक समस्याएँ विद्यमान हैं, उसमें महँगाई एक प्रमुख समस्या है। अधिकाँश वस्तुओं के मूल्यों में वृद्धि केवल भारत की ही समस्या नहीं है। वास्तविकता तो यह है कि अब अधिकांश विकासशील देशों में विशेष रूप से तथा संसार के अन्य देशों में साधारण रूप से यह समस्या विद्यमान है। संसार के अधिकांश देशों में मुद्रा-प्रसार की प्रवृत्ति इसका मुख्य कारण है। भारत में पिछले दो दशकों में सभी वस्तुओं और सेवाओं के मूल्यों में अत्यन्त तीव्रता से वृद्धि हुई है। वृद्धि का यह चक्र आज भी गतिवान है।
भारत में अधिकांश वस्तुओं के मूल्यों में वृद्धि के बहुत से कारण हैं। इन कारणों में अधिकांश आर्थिक कारण हैं, किन्तु कुछ कारण गैर-आर्थिक भी हैं। इन कारणों में से प्रमुख रूप से उल्लेखनीय कारण निम्नलिखित हैं-
कृषि- उत्पादन कृषि पदार्थों की कीमतों में निरन्तर वृद्धि का एक प्रमुख कारण उन समस्त वस्तुओं और सेवाओं के मूल्यों में वृद्धि है जो कृषि के लिए आवश्यक हैं। कृषि उर्वरकों के मूल्यों में वृद्धि, सिंचाई की दरों में वृद्धि, बीज के दामों में वृद्धि, कृषि मजदूरों की मजदूरी की दर में वृद्धि आदि कुछ ऐसे उदाहरण हैं जिनमें वृद्धि होने से स्वाभाविक रूप से ही उसका प्रभाव कृषि-पदार्थों पर पड़ता है।
भारत में अधिकांश वस्तुओं का मूल्य प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से कृषि पदार्थों के मूल्यों से सम्बन्धित है। यही कारण है कि जब किसी भी कारण से या कई कारणों से कृषि मूल्य में वृद्धि होती है तो उसके परिणामस्वरूप देश में अधिकांश वस्तुओं के मूल्य प्रभावित हो जाते हैं।
प्रशासन की उदासीनता- साधारणतः प्रशासन के स्वरूप पर यह निर्भर करता है कि देश में अर्थव्यवस्था एवं मूल्य-स्तर सन्तुलित होगा या नहीं। प्रभावशाली प्रशासक होने से कृत्रिम रूप से वस्तुओं और सेवाओं की पूर्ति में कमी करना व्यापारियों के लिए कठिन हो जाता है। अतः उस परिस्थिति में कीमतों में निरन्तर एवं अनियन्त्रित रूप में वृद्धि करना अत्यन्त कठिन हो जाता है।
आयात नीति कभी- कभी आयात सम्बन्धी गलत नीति के फलस्वरूप भी देश में वस्तुओं की कमी एवं कीमतों में अत्यधिक वृद्धि हो जाती है। यह सही है कि देश में जहाँ तक सम्भव हो, आयात कम होना चाहिए- विशेष रूप में उपयोग की वस्तुओं का आयात अधिक नहीं होना चाहिए। किन्तु यदि देश में वस्तुओं की पूर्ति माँग की तुलना में कम हो तो आयात की आवश्यकता होती है। यदि इन वस्तुओं का आयात न किया जाये तो माँग और पूर्ति में असन्तुलन होगा। पूर्ति जितनी कम होगी, वस्तुओं के दाम उतने ही बढ़ेंगे ।
जनसंख्या में वृद्धि- भारत में जनसंख्या तीव्रता से एवं अनियन्त्रित रूप में बढ़ रही है। जनसंख्या के इस विशाल आकार की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए सभी वस्तुओं और सेवाओं का बड़े आकार में होना अनिवार्य है। दुर्भाग्य से, भारत में कृषि और उद्योग के क्षेत्र में उतनी तीव्रता से उन्नति एवं उत्पादन की वृद्धि नहीं हो रही, जितनी की जनसंख्या में वृद्धि हो रही है। इसका स्वाभाविक परिणाम अधिकांश वस्तुओं और सेवाओं की कमी है, इसी के परिणामस्वरूप अधिकांश वस्तुओं और सेवाओं के मूल्यों में निरन्तर वृद्धि जारी है।
मुद्रा का प्रसार भारत में मुद्रा- प्रसार की प्रवृत्ति तृतीय योजना के प्रारम्भिक काल से ही बनी हुई है। मुद्रा-प्रसार के बहुत से कारण रहे हैं, किन्तु उसका परिणाम एक ही रहा है-मूल्यों में वृद्धि। यद्यपि सरकार की ओर से बार-बार यह आश्वासन दिया जाता रहा है कि मुद्रा-प्रसार को अब कम कर दिया जायेगा एवं इस प्रवृत्ति को रोका जायेगा। किन्तु अभी तक इस दिशा में कोई महत्त्वपूर्ण सफलता प्राप्त नहीं हो सकी है। मुद्रा-प्रसार को यदि नियन्त्रण में कर लिया जाये तो उससे मूल्य-स्तर को नियन्त्रण में रखना सरल हो जाता है।
घाटे का बजट- भारत में बजट और पूँजी निर्माण की जो स्थिति है वह योजनाओं को पूरा करने के लिए बिल्कुल पर्याप्त नहीं है। अतः इस कमी को दूर करने के लिए, अन्य उपायों के अतिरिक्त घाटे की बजट प्रणाली को अपनाया जाने लगा है। पिछले कई बजटों में इस पद्धति को अपनाया गया है, जिससे अधिकांश वस्तुओं और सेवाओं के मूल्यों में तेजी से वृद्धि हुई है।
अव्यवस्थित वितरण प्रणाली- भारत में अधिकतर विक्रेता संगठित हैं। इसके परिणामस्वरूप वह आपस में मिलकर वस्तुओं की खरीद, संचय एवं बिक्री के विषय की नीति का निश्चय करते हैं। धीरे-धीरे वस्तुओं के मूल्यों में वृद्धि होने लगती है। यदि सरकार इन प्रवृत्तियों को रोकने में असमर्थ होती है तो यह संस्थाएँ मूल्यों को निरन्तर बढ़ाती जाती हैं, जिससे उपभोक्ताओं को क कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
धन का असमान वितरण- भारत में आर्थिक असमानता बहुत बड़े आकार में विद्यमान है। धन के असमान वितरण का विशेष रूप से उन वस्तुओं के मूल्यों पर प्रभाव पड़ता है जिनकी माँग तो बहुत अधिक है, किन्तु पूर्ति अत्यन्त सीमित। इनमें विलासिता की वस्तुएँ एवं कीमती वस्तुएँ भी शामिल हैं। रोजगार की कमी एवं मूल्यों में वृद्धि से निर्धनों को जीवन-यापन की अधिकतर वस्तुओं और साधनों को जुटाना कठिन हो जाता है।
समस्या का निदान –
(1) कृषि पर अधिक ध्यान देना,
(2) सिंचाई की सुविधा,
(3) वितरण प्रणाली में बदलाव,
(4) भ्रष्टाचार पर अंकुश ।
उपसंहार- कृत्रिम अभाव के सृजन एवं मूल्यों में निरन्तर वृद्धि से कालाबाजारी एवं अत्यधिक लाभ कमाने की प्रवृत्ति बढ़ती है। भारत में भी यह प्रवृत्ति अभी तक विद्यमान है। यह दोनों ही प्रवृत्तियाँ देश की अर्थव्यवस्था को अवांछित रूप से प्रभावित करती हैं। इसमें कोई सन्देह नहीं कि सरकार की ओर से प्रत्यक्ष एवं परोक्ष प्रयासों के द्वारा इन प्रवृत्तियों को रोकने का बराबर प्रयास किया जा रहा है, किन्तु इस दिशा में अभी पूरी सफलता प्राप्त नहीं हो सकी है। लोकमंगल की भावना एवं पवित्र मन से यथार्थ प्रयास करने से ही इसका निदान सम्भव है। यदि हम सभी परिश्रम से कार्य करें, उत्पादन अधिक बढ़ाएँ और मितव्ययिता से जीवन को चलाने की आदत डालें तो महँगाई की समस्या का हल हमें अपने आप ही मिल सकता है।
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महँगाई की समस्या पर निबंध: FAQ (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)
1. महँगाई किसे कहते हैं?
महँगाई वह आर्थिक स्थिति है जिसमें वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें लगातार बढ़ती रहती हैं, जिससे आम आदमी की क्रय शक्ति (खरीदने की क्षमता) प्रभावित होती है।
2. महँगाई के प्रमुख कारण क्या हैं?
- मांग और आपूर्ति में असंतुलन
- उत्पादन लागत में वृद्धि
- काले धन का प्रसार
- आयात पर निर्भरता
- प्राकृतिक आपदाएँ
- सरकार की गलत आर्थिक नीतियाँ
3. महँगाई के क्या प्रभाव होते हैं?
- गरीब और मध्यम वर्ग पर आर्थिक बोझ
- बचत में कमी
- सामाजिक असमानता बढ़ना
- भ्रष्टाचार और कालाबाजारी का बढ़ना
4. महँगाई को नियंत्रित करने के उपाय क्या हैं?
- काले धन पर नियंत्रण
- उत्पादन क्षमता में वृद्धि
- आयात और निर्यात में संतुलन
- सख्त सरकारी नीतियाँ
- कृषि और औद्योगिक विकास पर ध्यान
5. महँगाई का समाज पर क्या असर पड़ता है?
महँगाई से लोगों का जीवन स्तर गिर जाता है, सामाजिक असंतोष बढ़ता है, और अपराध दर में वृद्धि होती है।
6. महँगाई का सबसे अधिक प्रभाव किस वर्ग पर पड़ता है?
महँगाई का सबसे अधिक प्रभाव निम्न और मध्यम वर्ग के लोगों पर पड़ता है, क्योंकि उनकी आय सीमित होती है।
7. भारत में महँगाई के प्रकार कौन-कौन से हैं?
- माँग आधारित महँगाई
- लागत आधारित महँगाई
- आयातित महँगाई
- संरचनात्मक महँगाई
8. महँगाई को मापने के प्रमुख संकेतक क्या हैं?
- उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI)
- थोक मूल्य सूचकांक (WPI)
9. महँगाई पर सरकार की क्या भूमिका होती है?
सरकार महँगाई को नियंत्रित करने के लिए मौद्रिक और वित्तीय नीतियाँ लागू करती है, कर प्रणाली को सुधारती है और आवश्यक वस्तुओं की उपलब्धता सुनिश्चित करती है।
10. महँगाई से निपटने के लिए आम आदमी क्या कर सकता है?
- खर्चों का सही प्रबंधन
- बचत की आदत डालना
- सस्ते विकल्पों का चयन करना
- वित्तीय जागरूकता बढ़ाना