Balmukund Gupt ka Jeevan Parichay : बाल मुंकुद गुप्त – लेखक परिचय, रचनाएँ, भाषा शैली, साहित्य में स्थान

WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now

बाल मुंकुद गुप्त – लेखक परिचय, रचनाएँ, भाषा शैली, साहित्य में स्थान || Balmukund Gupt ka Lekhak Parichay, Rachnaye, Bhasha Shaili, Sahitya me sthan

 

जीवन-परिचय :- भारतेन्दु युग और द्विवेदी युग के बीच की कड़ी यशस्वी पत्रकार [ Balmukund Gupt ka Jeevan Parichay ] बालमुकुंद गुप्त का जन्म 14 नवम्बर, सन् 1865 में रोहतक जिला (हरियाणा) के गुड़ियानी नामक गाँव में हुआ था। इनके पिता का नाम लाला पूरनमल तथा पितामह का नाम गोवर्धन दास था। इनका लालन-पालन विधवा चाची ने किया था। इनका परिवार बख्शी नाम बालों के नाम से प्रसिद्ध था।

Balmukund Gupt ka Jeevan Parichay, बाल मुकुंद गुप्त का जीवन परिचय

इनके चार भाई एक छोटी बहन थी। इनकी शिक्षा गाँव के मदरसे में से उर्दू माध्यम से हुई। दस वर्ष को दानों पर विचार वि आयु में रोकिन स्कूल में दाखिला लिया। वहाँ के प्रिंसिपल उनसे बहुत प्रभावित थे। पुरे पंजाब हैं। आपने अंग्रेजी का सर्वश्रेष्ठ छात्र घोषित होने पर इन्हें छात्रवृत्ति मिली। दादा व पिता की मृत्यु के कारण पढ़ाई छूट गई। परन्तु प्राइवेट पढ़कर 21 वर्ष की आयु में सन् 1886 में मिडिल पास किया। डी.ए. वी कॉलेज लाहौर से स्नातक तथा बी.टी.सी. की। 15 वर्ष की अल्पायु में इनका विवाह अनार देवी से हो गया। प्रतापनारायण मिश्र इनके काव्य गुरु थे। अंग्रेज वाइसराय लार्ड हार्डिंग के ऊपर इनको मित्र मण्डली ने बम फेंका। निर्दोष पाए जाने पर भी इनको 18 सितम्बर, 1907 को फाँसी लगा दी गई। उस समय उनकी आयु मात्र 42 वर्ष थी। उनका शव पत्नी के माँगने पर भी नहीं दिया जिस कारण भूखे रहकर उनकी पत्नी ने भी प्राण त्याग दिए।

आइए अब इस लेख में हिंदी गद्य के यशस्वी साहित्यकार एवं मूर्धन्य पत्रकार बालमुकुंद गुप्त का जीवन परिचय (Balmukund Gupt ka Jivan Parichay) और उनकी साहित्यिक रचनाओं के बारे में विस्तार से जानते हैं।

Read More :  Munshi Premchand ka Jivan Parichay : मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय, रचनाएं और भाषा शैली
नाम बालमुकुंद गुप्त (Balmukund Gupt)
जन्म 14 नवंबर, 1865
जन्म स्थान ग्राम गुड़ियानी, जिला रोहतक, हरियाणा
पिता का नाम लाला पूरणमल
पत्नी का नाम अनारो देवी
शिक्षा मिडिल
भाषा हिंदी
साहित्य काल आधुनिक काल (भारतेंदुयुगीन रचनाकार)
विधा निबंध, संपादन
मुख्य रचनाएँ शिवशंभु के चिट्ठे, चिट्ठे और खत व खेल तमाशा।
निधन 18 सितंबर, 1907, दिल्ली

भाषा :- बालमुकुन् उनको शिक्षा काका भी पुट था। आता बल्कि भाष शिव शम्भू के चि तुलअरज, ‘आव ‘कान न देना’,’ व व्यंग्य भरपूर

शैली :- बालमुकुन् है। शैली के निव्यंग्याबिट्टे’ हैं जिसमें लाचारी से जोड मुहाव उचित प्रयोग उद्धर का सफल प्रगायों का उदा संबो प्रयोग देखने भारत !

साहित्य :- बाल साहित्य के फाँसी पर शासन की व साहित्यन |

साहित्य सेवा :- बालमुकुन्द गुप्त ने बाल्यावस्था से ही लेखन कार्य शुरू कर दिया था। उनके लेख ‘अखबार’, ‘अवधपंच’, कोहिनूर’, ‘विक्टोरियाँ’ समाचार पत्र में छपते थे। सफल सम्पादक के रूप में ‘हिन्दी-हिन्दुस्तान’, ‘हिन्दी बंगवासी’, ‘भारतमित्र’ नामक पत्रों का सम्पादन किया। ये हास्य-विनोद सम्पन्न निबन्धों के कारण प्रसिद्ध हैं। ‘शिव शम्भु के चिट्ठे’ तथा ‘चिट्टे और खत’ इनकी प्रसिद्ध कृतियाँ हैं। स्फुट कविता संग्रह, उर्दू बीबी के नाम चिट्ठी आदि रचनाओं द्वारा बालमुकुन्द जी ने हिन्दी साहित्य की सेवा की है।

Balmukund Gupt ka Jeevan Parichay रचनाएँ:-

(क) सम्पादन- ‘हिन्दी-हिन्दुस्तान’, ‘हिन्दी बंगवासी’, ‘भारतमित्र पत्र’।

(ख) अनुवासद- ‘रत्नावली की नाटिका’, ‘हरिदास और मण्डल भगिनी’।

(ग) कविता संग्रह- ‘स्फुट कविता’।

(घ) निबन्ध- ‘शिव शंभु के चिट्ठे’, ‘चिट्ठे और खत’, ‘खेल तमाशा’।

(ङ) अन्य कृतियाँ- ‘उर्दू बीबी के नाम चिट्ठी’, ‘अखबारे चुनार’, ‘खिलौना’ ‘सन्निपात चिकित्सा’, ‘भारत-प्रताप’, ‘अखबार’, ‘अवधपंच’, ‘कोहिनूर’ और ‘विक्टोरिया’ प्रसिद्ध लेख हैं। उनकी समस्त रचनाएँ ब्रिटिश शासन के विरुद्ध व्यंग्यात्मक रूप में लिखी गई है।

वर्ण्य-विषय :- भारतेन्दु व द्विवेदी युग के बीच की कड़ी होने के कारण बालमुकुन्द जी की रचनाओं में भारतेन्दु युग के जागरण का उल्लास मिलता है। राजनीतिक विवशता और सामाजिक कुरीतियाँ के विरोध में स्वर मिलता है। आर्थिक दुर्व्यवस्था उन्हें बेचैन करती थी। हास्य व विनोद भी उनके लेखन का विषय रहा है। विदेशी शासन व पराधीनता के विरुद्ध स्वर उठना वर्ण्य विषय रहा। इनके निबन्धों में साधारण घटनाओं, गम्भीर समस्याओं, पर्व त्यौहारों और विचार प्रधान प्रश्नों पर विचार किया गया है। इनका सदैव सतर्क राष्ट्रीय व्यक्तित्व आपकी कृतियों में बोलता है। आपने अंग्रेजी शासन की दमनकारी नीतियों के विरुद्ध शंखनाद फूंका।

Read More :  Kabir Das Ka Jivan Parichay : संत कबीर दास जीवन परिचय, रचनाएँ और भाव पक्ष - कला पक्ष

भाषा:- बालमुकुन्द गुप्त खड़ी बोली को भी उर्दू का पुट देने में माहिर थे। उसका कारण था कि उनकी शिक्षा का आरम्भ उर्दू-फारसी से हुआ था। भाषा में निर्भीकता के साथ व्यंग्य-विनोद का भी पुट था। वे शब्दों के अद्भुत पारखी थे। आपकी भाषा में दुरूहता का दोष कभी नहीं आता बल्कि भाषा की स्पष्टता, सुबोधता और सरलता आपके हर वाक्य में दिखाई देती है। शिव शम्भू के चिट्ठे में “उर्दू” के शब्दों का बाहुल्य है; जैसे-‘जाफरानी’, ‘मौजों’, ‘ख्याली’, तुलअरज, ‘आवा’ आदि शब्दों का प्रयोग मिलता है। भाषा को प्रभावशील बनाने के लिए ‘कान न देना’, ‘आँखें बंद करके बैठना’ जैसे मुहावरों का प्रयोग किया गया है। भाषा में ओज व व्यंग्य भरपूर है।

शैली :- बालमुकुन्द गुप्त जी की शैली व्यवस्थित तथा सजीव है। उनमें जटिलता न होकर प्रवाह है। शैली के निम्नलिखित रूप हैं-

  1. व्यंग्यात्मक शैली – बालमुकुन्द गुप्त की सर्वाधिक चर्चित व्यंग्य कृति ‘शिवशंभु के चिट्टे’ हैं जिसमें भारतीयों की बेबसी, दुख एवं लाचारी को व्यंग्यात्मक ढंग से लॉर्ड कर्जन की दिलाचारी से जोड़ने की कोशिश की है।
  2. मुहावरेदार शैली- आपने रचनाओं में भावों की अभिव्यक्ति के लिए मुहावरों का उचित प्रयोग किया है; जैसे- ‘सुख की नींद सोते रहना’, ‘कान न देना।’
  3. उद्धरण शैली – बालमुकुन्द गुप्त ने उदाहरणों के माध्यम से घटनाओं को स्पष्ट करने का सफल प्रयास किया है। जैसे विदाई के पलों का महत्व बताने के लिये शिव-शंभु की दो गायों का उदाहरण दिया।
  4. संबोधन शैली- कथानक के वार्तालाप को सजीव बनाने के लिए सम्बोधन शब्दों का प्रयोग देखने को मिलता है; जैसे-लॉर्ड कर्जन को कहा- भाई लार्ड ! प्यारे नरवर गढ़ ! अभागे भारत !
Read More :  Dushyant Kumar Ka Jivan Parichay : दुष्यन्त कुमार जीवन परिचय, रचनाएँ और भाषा शैली

साहित्य में स्थान :- बाल मुकुन्द गुप्त को एक सच्चे देशभक्त के रूप में सदा याद रखा जाएगा। जिन्होंने साहित्य के माध्यम से भारतीयों में स्वाधीनता की चिंगारी रख दी तथा इसी प्रयास में हँसते हुए फाँसी पर लटक गए। देश-भक्त परिवार की लाज को रखा। उनका सम्पूर्ण साहित्य विदेशी शासन की क्रूरता तथा भारत की पराधीनता के विरुद्ध जिहाद की नींव पर खड़ा है। ऐसे साहित्य व साहित्यकार को सदैव याद रखा जाएगा।

Official Website Click Here
Telegram Group Join Now
WhatsApp Group Join Now

Balmukund Gupt ka Jeevan Parichay FAQs

Q1: बालमुकुंद गुप्त कौन थे?
उत्तर: बालमुकुंद गुप्त (1865-1907) एक प्रसिद्ध हिंदी लेखक, पत्रकार, और व्यंग्यकार थे। वे हिंदी साहित्य और पत्रकारिता के शुरुआती युग के महत्वपूर्ण हस्ताक्षर माने जाते हैं।

Q2: बालमुकुंद गुप्त का जन्म कब और कहाँ हुआ था?
उत्तर: उनका जन्म 1865 में हरियाणा के रोहतक जिले के गुड़ियानी गाँव में हुआ था।

Q3: बालमुकुंद गुप्त का सबसे प्रसिद्ध योगदान क्या है?
उत्तर: उनका सबसे बड़ा योगदान हिंदी पत्रकारिता को सशक्त बनाना था। उन्होंने ‘हिंदी बंगवासी’ अखबार में संपादक के रूप में कार्य किया और सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों पर अपने व्यंग्यपूर्ण लेखों से समाज को जागरूक किया।

Q4: बालमुकुंद गुप्त का लेखन किस शैली के लिए प्रसिद्ध था?
उत्तर: वे अपनी व्यंग्यात्मक और पैनी लेखन शैली के लिए प्रसिद्ध थे। उनके लेखों में समाज और राजनीति पर गहरा कटाक्ष होता था।

Q5: बालमुकुंद गुप्त की प्रमुख रचनाएँ कौन-कौन सी हैं?
उत्तर: उनकी प्रमुख रचनाओं में ‘शिवशंभु के चिट्ठे’ सबसे प्रसिद्ध है। इस पुस्तक में उनके व्यंग्यपूर्ण लेखों का संकलन है।

Q6: बालमुकुंद गुप्त का जन्म कब और कहां हुआ था?

उत्तर: बाबू बालमुकुंद गुप्त का जन्म 14 नवंबर, 1865 को हरियाणा के रोहतक जिले में ग्राम गुड़ियानी में हुआ था।

Q7: बालमुकुंद गुप्त के माता-पिता का नाम क्या था?

उत्तर: बालमुकुंद की माता के बारे में अधिक जानकारी उपलब्ध नहीं है, इनके पिता का नाम लाला पूरणमल था।

Q8: बालमुकुंद गुप्त किस युग के लेखक थे? 

उत्तर: बालमुकुंद गुप्त भारतेंदु और द्विवेदी युग की मध्यवर्ती कड़ी माने जाते हैं।

Q9: बालमुकुंद गुप्त की रचनाएं कौन-कौन सी हैं?

उत्तर: शिवशंभु के चिट्ठे, चिट्ठे और खत व खेल तमाशा उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं।

Q10: बालमुकुंद गुप्त की भाषा कौन सी थी?

उत्तर: बालमुकुंद गुप्त की भाषा खड़ी बोली हिंदी थी।

Q11: बालमुकुंद गुप्त की मृत्यु कब हुई?

उत्तर: बालमुकुंद गुप्त का 18 सितंबर, 1907 को दिल्ली में निधन हुआ था।

WhatsApp Group Join Now
Telegram Group Join Now

Leave a Reply