Trilochan Ka Jivan Parichay :त्रिलोचन शास्त्री जीवन परिचय, रचनाएँ और भाषा शैली
Trilochan Ka Jivan Parichay :- हिन्दी के आधुनिक काल के कवियों में प्रतिष्ठित कवि त्रिलोचन का जन्म 20 अगस्त, 1917 को उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर जिले के चिरानी पट्टी-कटघरा पट्टी स्थान पर हुआ था। इनका मूल नाम वासुदेव सिंह था। आपने परिश्रमपूर्वक अपनी शिक्षा पूरी की तथा अध्यापन करने लगे। आप हिन्दी, अंग्रेजी, संस्कृत, उर्दू आदि भाषाओं के ज्ञाता थे। त्रिलोचन ने अंग्रेजी के प्रवक्ता के रूप में नेशनल इण्टर कॉलेज, जौनपुर में कार्य किया। आप अपने स्वभाव के अनुरूप दूसरों का सहयोग करने में लगे रहे। आपने विदेशी छात्रों को हिन्दी, उर्दू और संस्कृत पढ़ायी। त्रिलोचन ने कुछ वर्षों तक दिल्ली विश्वविद्यालय के उर्दू विभाग में चलने वाली हिन्दी-उर्दू द्विभाषिक कोश परियोजना में भी कार्य किया। आप सागर विश्वविद्यालय में मुक्तिबोध सृजनपीठ के अध्यक्ष भी रहे। आप 9 दिसम्बर, 2007 को इस संसार से सदैव के लिए विदा हो गए।
Trilochan Ka Jivan Parichay : ‘वासुदेव सिंह’ यानी ‘त्रिलोचन शास्त्री’ प्रगतिशील काव्य-धारा के प्रमुख कवि थे। क्या आप जानते हैं कि वे आधुनिक हिंदी कविता की प्रगतिशील ‘त्रयी’ के तीन स्तंभों में से एक थे। इस ‘त्रयी’ के अन्य दो स्तम्भ ‘नागार्जुन’ व ‘शमशेर बहादुर सिंह’ थे। वहीं, 90 वर्ष के अपने जीवन काल में उन्होंने साहित्य सृजन के साथ ‘प्रभाकर’, ‘वानर’, ‘हंस’ और ‘आज’ जैसी पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया था। वे वर्ष 1995 से 2001 तक ‘जन संस्कृति मंच’ के राष्ट्रीय अध्यक्ष भी रहे थे। साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में अपना विशेष योगदान देने के लिए उन्हें ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’, ‘शलाका सम्मान’ व ‘महात्मा गांधी पुरस्कार’ से सम्मानित किया जा चुका है।
हिंदी कविता के प्रमुख कवि त्रिलोचन का जीवन परिचय (Trilochan Ka Jivan Parichay) और उनकी साहित्यिक रचनाओं के बारे में विस्तार से जानते हैं।
मूल नाम | वासुदेव सिंह |
उपनाम | त्रिलोचन शास्त्री (Trilochan Shastri) |
जन्म | 20 अगस्त, 1917 |
जन्म स्थान | चिरानी पट्टी, सुल्तानपुर जिला, उत्तर प्रदेश |
शिक्षा | एमए अंग्रेजी, संस्कृत में शास्त्री की उपाधि |
पेशा | साहित्यकार, कवि, संपादक |
विधाएँ | कविता, कहानी, लेख |
साहित्य काल | आधुनिक काल |
भाषा | हिंदी |
पुरस्कार एवं सम्मान | साहित्य अकादमी पुरस्कार, शलाका सम्मान, महात्मा गांधी पुरस्कार |
निधन | 09 दिसंबर, 2007 |
साहित्य सेवा :- त्रिलोचन हिन्दी के अतिरिक्त अरबी और फारसी भाषाओं के निष्णात ज्ञाता माने जाते थे। आप पत्रकारिता के क्षेत्र में भी सक्रिय रहे। 1995 से 2001 तक आप जन-संस्कृति मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे। आपको हिन्दी सॉनेट (अंग्रेजी छंद) का साधक माना जाता है। अपने इस छंद को भारतीय परिवेश में ढाला और लगभग 550 सॉनेट की रचना की। इसके अतिरिक्त आपने कहानी, गीत, गज़ल और आलोचना जैसी विधाओं के माध्यम से भी हिन्दी साहित्य को समृद्ध करते हुए अभूतपूर्व साहित्य सेवा की।
रचनाएँ :- बहुभाषाविद् त्रिलोचन साहित्य सृजन के साथ-साथ पत्रकारिता में भी सक्रिय रहे। आपकी प्रमुख रचनाएँ इस प्रकार हैं-
(1) ‘धरती’,
(2) ‘दिगन्त’,
(3) ‘गुलाब और बुलबुल’,
(4) ‘शब्द’,
(5) ‘ताप के तापे हुए दिन’,
(6) ‘उस जनपद का कवि हूँ’,
(7) ‘तुम्हें सौंपता हूँ’ और
(8) ‘अरंधान’।
साहित्य अकादमी ने आपको ‘ताप के तापे हुए दिन’ कविता संग्रह के लिए पुरस्कार प्रदान किया।
भाव पक्ष :- सहज अनुभूति को सरल अभिव्यक्ति प्रदान करने में कुशल त्रिलोचन के विषय अपने आसपास से ही लिए गए हैं। लोक जीवन में उनका मन खूब रमा है, इसलिए जन-जीवन को जितनी सहज, स्वाभाविक प्रस्तुति आपके काव्य में हुई है उतनी अन्यत्र दुर्लभ है।
: बढ़ अकेला :
यदि कोई संग तेरे पंथ वेला
बढ़ अकेला
चरण ये तेरे रुके ही यदि रहेंगे
देखने वाले तुझे, कह, क्या कहेंगे
हो न कुंठित, हो न स्तंभित
यह मधुर अभियान वेला
बढ़ अकेला
श्वास ये संगी तरंगी क्षण प्रति क्षण
और प्रति पदचिह्न परिचित पंथ के कण
शून्य का शृंगार तू
उपहार तू किस काम मेला ।
बढ़ अकेला
विश्व जीवन मूक दिन का प्राणमय स्वर
सांद्र पर्वत-शृंग पर अभिराम निर्झर
सकल जीवन जो जगत के
खेल भर उल्लास खेला
बढ़ अकेला
कला पक्ष :- चमत्कार, बनावटीपन तथा दुरूहता से मुक्त त्रिलोचन के काव्य का कलापक्ष अत्यन्त सरल, सुस्पष्ट और प्रभावी है। उन्होंने व्यावहारिक भाषा को महत्व दिया है। वे अलंकारों का सहज प्रयोग करते हैं। प्रतीक और बिम्ब भी उन्होंने लोक-जीवन से ही लिए हैं।
पुरस्कार एवं सम्मान :- त्रिलोचन (Trilochan Ka Jivan Parichay) को साहित्य के क्षेत्र में अपना विशेष योगदान देने के लिए सरकारी और ग़ैर-सरकारी संस्थाओं द्वारा कई पुरस्कारों व सम्मान से पुरस्कृत किया जा चुका है, जो कि इस प्रकार हैं:-
- साहित्य अकादमी पुरस्कार
- शलाका सम्मान
- महात्मा गांधी पुरस्कार
- मैथिलीशरण गुप्त राष्ट्रीय सम्मान
साहित्य सृजन और संपादन :-
त्रिलोचन शास्त्री हिंदी के अतिरिक्त उर्दू, अरबी और फारसी भाषा के जानकार थे। माना जाता है कि उच्च शिक्षा के दौरान ही उनका साहित्य के क्षेत्र में पर्दापण हो गया था। शुरुआत में वे कविताएं लिखते थे लेकिन बाद में साहित्य की अन्य विधाओं में भी लिखने लगे। ‘गुलाब और बुलबुल’, ‘घरती’, ‘ताप के ताये हुए दिन’ और ‘उस जनपद का कवि हूँ’ उनके प्रमुख काव्य संग्रह हैं। बता दें कि साहित्य सृजन के साथ ही उन्होंने संपादन के क्षेत्र में अपना विशेष योगदान दिया था। उन्होंने ‘हंस’, ‘आज’, ‘प्रभाकर’, ‘वानर’ और ‘समाज’ जैसी पत्र-पत्रिकाओं का संपादन किया और हिंदी के अनेक कोशों के निर्माण से जुड़े रहे।
साहित्य में स्थान :- आधुनिक काल के वरिष्ठ कवियों में प्रतिष्ठित त्रिलोचन का लोक जीवन से गहरा जुड़ाव रहा है, उनके काव्य में वह साकार हो उठा है। अपनी सरलता, सहजता, सपाटबयानी तथा सुस्पष्टता के लिए वे चिरकाल तक स्मरण किये जायेंगे। आधुनिक काल के रचनाकारों में त्रिलोचन का महत्वपूर्ण स्थान है।
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